ढूँढते फिर रहे दरबदर हम जिसे,
वो हमीं में है हम को ख़बर ही नहीं।
मन्दिरों-मस्जिदों में मिलेगा न वो,
बन्दगी में हमारी असर ही नहीं।।
फ़ितरत-ए-सानिया ऐब लाखों भरे,
बात क्यूँ वो सुनेगा हमारी भला।
रोज़ रोज़ा किया नाम उसका लिया ,
पाप करते रहे हमको डर ही नहीं।।
राम अल्लाह सतगुरु सभी नाम ये,
तुमको अच्छा लगे जो पुकारो वही।
एक ईश्वर सभी में समाया हुआ,
देख लें हम ख़ुदा वो नज़र ही नहीं।।
सागरों पर्वतों में न ढूँढो उसे,
काशी काबा में कब तक रहोगे फँसे।
मन के भीतर ज़रा झाँक लें हम अगर,
नूर उसका हमारा इतर ही नहीं।।
चाँद 'सूरज' ज़मीं आसमाँ में वही,
झील झरने की धारा में बहता वही।
ज़र्रा ज़र्रा उसी का बनाया हुआ,
सच इधर भी वही है उधर ही नहीं।।
*** सूरजपाल सिंह
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