रखना मन में सोचकर, आज समय के राज।
एक साथ करते चलें, एक पंथ दो काज।।
एक पंथ दो काज, चतुरता हम दिखलायें।
दो पंछी लें मार, शिलीमुख एक चलायें।।
कहता समय पुकार, एक मत साधे रहना।
भले चलो इक राह, नज़र दो पर ही रखना।।
सपना हो उत्कर्ष का, शीश सजे तब ताज।
कर्म करें इस भाँति हों, एक पंथ दो काज।।
एक पंथ दो काज, शूरता फिर भी माफी।
तन-मन दोनों तृप्त, मेघ-जल धारा काफी।।
उदर पूर्ति का लक्ष्य, नहीं हो केवल अपना।
दूजों का भी ध्यान, तभी पूरा हो सपना।।
*** डॉ. राजकुमारी वर्मा
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