संवाद में कुछ शब्द हैं चुपचाप-से
आरम्भ में कर लूँ निवेदन आपसे
वैसे व्यथा तो ओट में ली साज़ ने
कुछ दर्द ज़ाहिर हो गए आलाप से
शुरुआत मेरे नृत्य की ऐसी रही
जब बोल फूटे ढोल के, इक थाप से
तबसे शुरू है ये मेरी दीवानगी
परिचित नहीं था जब मैं अपने आपसे
चाहे थकन से चूर गहरी नींद हो
पहचान लेगा दिल ख़ुशी पदचाप से
है कामयाबी का असर अब उलझनें
कितनी बड़ी हैं आज मेरे नाप से
उद्भव हुआ है इस धरा पर पुण्य का
कुछ दान से कुछ कर्म से कुछ जाप से
*** मदन प्रकाश सिंह
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