Sunday, 15 May 2022

ऐ राही

 



देखा है किसने कल राही
तू अपने पथ पर चल राही

बाधाएँ बाधक हैं उनको
भूले जो अपना बल राही

गिरि कंदर धरती नभ सागर
सब हैं तेरे कर तल राही

जब जब जग माॅंगे तब देता
तू ही मसलों का हल राही

साहस के दुर्गम पथ पर ही
पथिकों का बनता दल राही

हिमगिरि से सागर तक फैला
तेरे छालों का जल राही

चलना तो ईश्वर का वर है
रुकना जीवन से छल राही
~~~~~~~
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

No comments:

Post a Comment

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...