Sunday 1 May 2022

मनुष्य/व्यक्ति/आदमी

 



सत्य से ऐसा भगा है आदमी
झूठ का पुतला लगा है आदमी

हो गई लगता मिलावट ख़ून में
दे रहा ख़ुद को दगा है आदमी
ज़िंदगी का चैन उसने खो दिया
नींद में लगता जगा है आदमी
रोज काँटे बो रहा अपने लिए
अब नहीं ख़ुद का सगा है आदमी
"चंद्र" को होने लगी पहचान अब
रंग कैसा भी रँगा है आदमी

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

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