विपदा की आहट कहाँ, देती पूर्वाभास।
जीव भ्रमित बेबस दिखे, कालचक्र का वास॥
जटिल आपदा-काल ये, सहसा मारे दंश।
अजब घनेरा ढाहता, घोर दुखों का अंश॥
बुद्धि-ज्ञान अंधा हुआँ, खोया मन का चैन।
तारे दिन में दिख रहे, विपदा काली-रैन॥
अंतस भेदन हो रहा, आफत का हो अंत।
राह बड़ी दुष्कर हुई, जिह्वा काटे दंत॥
मुख में बंदी हो गए, मीठे-मीठे बोल।
हाथों की मुट्ठी बँधी, आँख-फटी मन-खोल॥
विकट समस्या आ पड़ी, त्वरित कहाँ उपचार।
धीरे-धीरे उतरता, मानस संचित खार॥
दाँतों में उँगली दबी, हाथ मले बेचैन।
ईश्वर कुछ तो कीजिए, त्राहिमाम के बैन॥
*** सुधा अहलूवालिया ***
No comments:
Post a Comment