काशमीर सुषमा अति न्यारी।
मन हरसै लखि केसर क्यारी।।
फूलहिं सुमन विविध विधि बागा।
सुचि गृह बहहिं अनेक तड़ागा।।
पुष्प वाटिका सोहति नीकी।
सुषमा अमर पुरी लगि फीकी।।
बहु बिधि फलहिं सेव अंजीरा।
देखि छटा मन धरहि न धीरा।।
बाग निशात लगे मन भावन।
दृश्य मनोहर हिम गिरि पावन।।
डल की छटा देखि हरषाई।
सबहि रहे निज नयन जुड़ाई।।
मोहहि शाली मार बगीचा।
लगे बिछे हैं पुष्प गलीचा।।
मुगल बाग की शोभा न्यारी।
मन हरि लेत सुमन हर क्यारी।।
*** चन्द्र पाल सिंह ***
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