Sunday 15 April 2018

कुण्डलिया छंद




 (1)

धोखा मक्कारी ठगी, आज पा रहे मान।
जो इनमें जितना निपुण, वह उतना गुणवान।।
वह उतना गुणवान, झूठ जिसके रग-रग में।
दगाबाज ठग धूर्त, फलें फूलें इस जग में।।
हुआ सफलता मंत्र, आज का यही अनोखा।
करते हैं अब राज, ठगी मक्कारी धोखा।।
 

(2)
 

जाना है जग छोड़कर, जीवन है दिन चार।
सद्कर्मों से ही सदा, होता है भव पार।।
होता है भव पार, धर्म ही एक सहारा।
छूठ कपट छल दम्भ, सत्य से हरदम हारा।।
विधि का यही विधान, कर्मफल सबको पाना।
धन वैभव यश कीर्ति, यहीं सब कुछ रह जाना।।


***हरिओम श्रीवास्तव***

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