Sunday, 29 April 2018

दोहावली - सफर/यात्रा


 
जन्म हुआ जीवन शुरू, और मौत अंजाम।
जन्म-मरण के बीच ही, होता सफर तमाम।।


घड़ी ठहर जा इक घड़ी, क्यों चलती इठलाय।
सुन कर हँस बोली घड़ी, जो ठहरा पछताय।।


सफर कहाँ वादा करे, मंजिल मिल ही जाय।
नेक कर्म मझधार से, साहिल तक ले जाय।।


जीवन रेत समान है, जाने कब झर जाय।
दबे पाँव सँग मौत है, साँस ठहर ना जाय।।


सैर-सपाटा कर लिए, यात्रा चारो धाम।
महायात्रा शेष अभी, भज लो सीताराम।।


  *** सतीश मापतपुरी ***

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