दिल के सच्चे मन के अच्छे, मेरे मन के मीत।
दिल से मुझे चाहते हो तुम, होने लगा प्रतीत।।
नवल प्रेम रस फूट पड़ा है, जबसे नैना चार।
प्रिय से दूर रहो अब मत तुम, करता हृदय पुकार।।
मन वीणा सम झंकृत होकर, बजा रहा संगीत।
स्वप्नों का संसार लिए हूँ, प्रीति रीति का ज्ञान।
जग-जीवन का भार लिए हूँ, पथ की है पहचान।।
सफर हमारा कट जायेगा, गाकर मधुमय गीत।
फूलों की चाहत सबको है, नहीं शूल से बैर।
मंजिल पाने को जब चलते, कंटक चुभते पैर।।
हम सुख-दुख के साथी होंगे, हार मिले या जीत।
दिल के सच्चे मन के अच्छे, मेरे मन के मीत।
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ठा. सुभाष सिंह, कटनी, म. प्र.
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