जीवन की गाड़ी को कोई, आकर देगा धक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।
जब तक हाथ-पांव चलता है, रुपया-पैसा जोड़ो,
बेटा-बेटी बसे शहर में, उनकी आशा छोड़ो।
जाम न होने देना कोई, निज गाड़ी का चक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।
एक पिता का हाल बताऊं, खटिया पर था लेटा,
डांट रहा था किसी बात पर, उसको लंपट बेटा।
कुछ कहते बन नहीं रहा था, मैं था हक्का-बक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।
शौक करो कुछ अपने पूरे, गाना-वाना गाओ,
नहीं ढोल तो थाली-लोटा, कुछ तो आज बजाओ।
सुबह उठो, कुछ खेलो-कूदो, मारो चौका-छक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।
नहीं बुढ़ापे को तुम कोसो, मत बीमारी पालो,
आने वाले हर संकट को, साहस से तुम टालो।
खेतों में अब फसल उगाओ, ज्वार, बाजरा, मक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।
*** राजकुमार धर द्विवेदी
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