धर्म-कर्म को हृदय बसायें, प्रण के जो प्रतिपालक हों।।
उत्साही बलवान रहें जो, माता के सब कष्ट हरें।
परशुराम श्रीराम भीम हों, कुछ अर्जुन उद्दालक हों।।
*** विश्वजीत शर्मा 'सागर'
गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...
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