धर्म-कर्म को हृदय बसायें, प्रण के जो प्रतिपालक हों।।
उत्साही बलवान रहें जो, माता के सब कष्ट हरें।
परशुराम श्रीराम भीम हों, कुछ अर्जुन उद्दालक हों।।
*** विश्वजीत शर्मा 'सागर'
बेसुध करती रात सयानी, नित्य सँवारे रवि-स्यंदन है। हार न जाना कर्म पथिक तुम, सुख-दुख सत्य चिरंतन है। मत घबराना देख त्रासदी, उम्मीदों से ज...
No comments:
Post a Comment