Sunday, 13 November 2022

चाहत - एक मुक्तक

 

भारत माता की चाहत है, अब कुछ ऐसे बालक हों।
धर्म-कर्म को हृदय बसायें, प्रण के जो प्रतिपालक हों।।
उत्साही बलवान रहें जो, माता के सब कष्ट हरें।
परशुराम श्रीराम भीम हों, कुछ अर्जुन उद्दालक हों।।

*** विश्वजीत शर्मा 'सागर'

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