कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है।
लाक्षागृह है भवन हमारे, इन्द्रप्रस्थ यह नया नगर है॥
पाण्डुर वर्ण ज्ञान से बोझिल, जन्म अंधता का वर बल है,
अंधे का सहचर भी अंधा, अनुचर उसका छल में खल है,
बल शत भागों में बॅंटकर भी, लेता है छल का आश्रय ही,
पंच प्राण रह अडिग धर्म में, बसते हैं विधि वश अरण्य ही,
भीषण व्रत धारे संन्यासी, मठ के बन्दी सिले अधर है।
कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है॥
नीति उपेक्षित खड़ी द्वार पर, भीगे नयन न्याय नत मुख है,
चीर हरण के सभी समर्थक, सिंहासन का सबको दुख है,
हाथ पसारे खड़ा पुरोहित, मौनी गुरु का गौरव हत है,
सब खाते सौगंध सत्य की, दिखता नहीं कर्म में सत है,
भेद न जान सका जल-थल का, दोषी निर्मल स्वच्छ डगर है।
कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है॥
जहाँ लाभ संभाव्य वहीं हम, वहीं धर्म की नींव सुदृढ़ है,
वही मार्ग है शास्त्र प्रमाणित, जहाँ स्वार्थ हित वचन अदृढ़,
धर्म-न्याय की पीट डुगडुगी, महारथी बन खड़े युद्ध में,
घेर मारते हैं बालक को, फिर श्रद्धा-विश्वास बुद्ध में,
बरस रहा जल स्रोत सूखते, गल से बहती गरल नहर है।
कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है॥
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
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