कठपुतली सब हो गये, लोकतंत्र आधार।
चौथा खम्भा देश का, करता अब व्यापार॥2॥
सच्ची ख़बरों के सभी, बन्द हुए अब द्वार।
दरवाजे पर है खड़ा, तगड़ा चौकीदार॥3॥
धन शाहों का तंत्र पर, देख बढ़ा अधिकार।
लोकतंत्र लुंठित हुआ, कुंठित वाणी धार॥4॥
ख़बरों की लेने ख़बर, जागेगा संसार।
कलमकार के कलम की, कभी न होगी हार॥5॥
भ्रष्ट व्यवस्था पर सदा, करता तीखे वार।
पत्रकार जो हो निडर, होता पहरेदार॥6॥
समाचार सच दे सदा, जिसे देश से प्यार।
पाना सच्ची सूचना, जनता का अधिकार ॥7॥
कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.
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