Sunday 18 December 2022

नदी किनारे - एक गीत

 

नदी किनारे सुंदर कुटिया, सन्त बसाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

हिमगिरि से निकली ये नदिया, सतत यहाँ बहती।
कितनी मोहक धरा देश की, तपोभूमि लगती।।
सूर्य रश्मियों से चमके पर्वत, खूब सुहाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

शांत मनोरम जगह देखकर, सबके नयन खिले।
नदी किनारे खड़े वृक्ष से, ठण्डी छाँव मिले।।
सम्मोहित पुष्पों से सुरभित, धरा सजाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

स्निग्ध छुअन ये नीर दिलों में, नदियों का अर्चन।
चन्दन सा मन भरे हिलोरे, करता काव्य-सृजन।।
जहाँ सुखद उल्लास बरसता, हमें रिझाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...