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"फ़ायदा"
फ़ायदा... एक शब्द जो दिख जाता है हर रिश्ते की जड़ों में हर लेन देन की बातों में और फिर एक सवाल बनकर आता है इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा मनुष्य...

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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
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जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
संजीव सर ,बहुत गहराई हैं आपकी कविता मॆ.
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय आलोक जी.
Deleteसुंदर भावो की अनुपम प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी. सादर नमन
ReplyDeleteसुंदर जीवन दर्शन , सादर बधाई आदर्णीय संजीव सर जी , आदर्णीय सपन सर जी बेहतरीन ब्लोग हेतु हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीया.
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