1.
पाक मास रमजान रवाना,
तभी हुआ फिर उसका आना,
मैं तो उसकी हुई मुरीद,
क्या सखि साजन ? ना सखि 'ईद'।।
2.
रोज़े रखकर उसको पाया,
उसने मुझको गले लगाया,
उससे लगी बड़ी उम्मीद,
क्या सखि साजन ? ना सखी 'ईद'।।
3.
उसका आना ख़ुशियाँ लाया,
गिले दूर कर गले लगाया,
उसने आज उड़ा दी नींद,
क्या सखि साजन ? ना सखि 'ईद'।।
4.
जब भी होता उसका आना,
मौसम लगने लगे सुहाना,
विपदायें हो जाये रसीद,
क्या सखि साजन ? ना सखि "ईद"।।
**हरिओम श्रीवास्तव**
No comments:
Post a Comment