मस्ती भरी कजरी छेड़ दे री सजनी, कि सावन आ गया है।
साँवरे के रूप-सी छा रही काली घटाएँ,
संदेशा पिया का ला रही पुरवा हवाएँ,
सोलहों सिंगार कर ले अरी बावरी, कि सावन आ गया है।
नाचती बूँदों के संग-संग पायल छनक उठी,
कलाई पर अनजाने ही ये चूड़ी खनक उठी,
मदहोश- सी नाच रही वन में मयूरी, कि सावन आ गया है।
हरी चुनरिया ओढ़ कर ये धरा भी झूम रही,
मदमत्त-सी लता भी तरु का मुखड़ा चूम रही,
ओ री सखि मैं भी हो चली बावरी, कि सावन आ गया है।
मस्ती भरी कजरी छेड़ दे री सजनी, कि सावन आ गया है।
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***** बिहारी दुबे
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