द्वन्द्व जीवन में बहुत सुख-दुख निराशा-आस के।
किन्तु धागे हैं सुदृढ़ बाँधे मुझे विश्वास के।
क्या करेगी द्वैत धारा हाथ में तव हाथ है।
हर्ष में हर दुःख में साथी तुम्हारा साथ है।
दे रहा यद्यपि समय यह घात पर नित घात है।
प्रेम प्रिय का दे रहा पर हर व्यथा को मात है।
नैन में हैं स्वप्न अब तक प्रिय तुम्हारे रास के।
द्वन्द्व जीवन में बहुत सुख-दुख निराशा-आस के।
राह जीवन की अबूझी क्या पता जाना कहाँ।
प्रिय ! कदम तेरे जहाँ मेरा ठिकाना है वहाँ।
जिन्दगी की वीथिका मुझको नहीं उलझा सके।
कब भला मेरे कदम तुम तक पहुँचने में थके।
स्वप्न देखे हैं सदा प्रिय के शुभोज्ज्वल हास के।
द्वन्द्व जीवन में बहुत सुख-दुख निराशा-आस के।
एक पल को छवि हृदय से दूर हो सकती नहीं।
चाँद की शुभ ज्योत्सना में कालिमा रहती नहीं।
घोर झंझा में तरंगित हो रहा मेरा हृदय।
है चतुर्दिक आज मेरे प्रेय का मधुमय वलय।
अब विरह में हैं प्रवाहित स्वर मिलन उच्छ्वास के।
द्वन्द्व जीवन में बहुत सुख-दुख निराशा-आस के।
*** सीमा गुप्ता "असीम"

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