चेहरे की बातें छोड़ो दिल पढ़ना जिसको आता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।
छीना–झपटी, आँख–मिचौली, गाली देता जो हक़ से,
कभी हँसाता कभी रुलाता, कभी पकाता बकबक से,
नहीं बुराई सुन सकता जो बेशक सच बोले कोई,
विपदा की बारिश में ख़ुद ही जो छाता बन जाता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।
मात पिता, भाई, बांधव ये रिश्ते कितने ख़ास सभी,
मिले जन्म से हमको सारे चलती मर्जी कहाँ कभी,
क़िस्मत से चुन सकते केवल जग में सच्चा मित्र सुनो,
बेशक अपना साया छोड़े पर जो साथ निभाता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।
हर नाता मतलब का नाता थोड़ा ज़्यादा क्या कहना,
स्वार्थी दुनिया रंग बदलती सब कहते बच के रहना,
मगर भरोसा करने से ही मिल सकता है मित्र हमें,
हाल सुनाने से जिसको ये मन हलका हो जाता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।
सूरजपाल सिंह....
कुरुक्षेत्र।
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