Sunday, 15 December 2024

कुंकुम तिलक रवि भाल दे - एक गीत

 

प्राची विहँसती खिल उठी, कुंकुम तिलक रवि भाल दे।
लाली कपोलों से उतारे, कर क्षितिज तक लाल दे।

आहट अरुण की सुन उषा, तब माँग में सिंदूर भर।
चल दी सजन के साथ सज, आलोक दिशि-दिशि पूर कर।
वो हो गया चेतन नजर, जिस ओर भी वह डाल दे।
प्राची विहँसती खिल उठी, कुंकुम तिलक रवि भाल दे।

आश्रम हुए जाग्रत हवन का, धूम्र नभ पर छा गया।
ओंकार ध्वनि की गूँज में फल , मौन योगी पा गया।
आहूत देवों हित बटुक, नैवेद्य से भर थाल दे।
प्राची विहँसती खिल उठी , कुंकुम तिलक रवि भाल दे।

कोकिल मधुर वाणी उचारे, मन्त्र निज रव गान कर।
मधुकर करे गुंजन प्रणव को, मात्र किंचित दान कर।
प्रस्फुटन के हित पंकजों को, नीर निर्मल ताल दे।
प्राची विहँसती खिल उठी , कुंकुम तिलक रवि भाल दे।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

No comments:

Post a Comment

कहर बरसता सर्दी में - गीत

सड़क किनारे ठिठुरे प्राणी, नस-नस में नश्वर चुभता, हिम-श्रृंगों से मरुथल तक में, कहर बरसता सर्दी में।   धूप-छाँव की आँख मिचौनी, कृषक देखते जाड़...