Sunday, 29 December 2024

कहर बरसता सर्दी में - गीत

सड़क किनारे ठिठुरे प्राणी, नस-नस में नश्वर चुभता,
हिम-श्रृंगों से मरुथल तक में, कहर बरसता सर्दी में।
 
धूप-छाँव की आँख मिचौनी, कृषक देखते जाड़े में
बर्फ पड़ी उत्तर में इतनी, उतरे कौन अखाड़े में।।
हिमकिरीट से श्वेत हिमालय, ढका बर्फ की चादर से,
चादर ओढ़े सटकर मानव, सोता रहता सर्दी में।।

शीत काँपता जिसके भय से, आतप ठंडा पड़ जाता।
वर्षा पर अभिमान उन्हें है, जाड़े से भी है नाता।।
जाड़े में भी फसल उगाते, आस शरद की मावठ से,
नभ से बस शीतलता बरसे, सूर्य तरसता सर्दी में।।

घना कोहरा ख़ूब सताता, सर्दी जब दस्तक देती।
कड़क धूप से राहत पाते, ओस ताप को हर लेती।।
निकला सूरज हुआ सवेरा, गुनगुन धूप सुहाती है,
बढ़ा प्रदूषण बहुत धुन्ध से, ख़ूब अखरता सर्दी में।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

No comments:

Post a Comment

छोड़ कर जाना नहीं प्रिय - एक गीत

  छोड़ कर जाना नहीं प्रिय साथ मेरे वास कर लो। पूर्ण होती जा रही मन कामना तनु प्यास भर लो। मैं धरा अंबर तुम्ही हो लाज मेरी ढाँप लेना। मैं रहूँ...