Sunday, 5 January 2025

नव द्वार खोल आए - गीत

 

नव वर्ष आगमन पर नव द्वार खोल आए।
नव भोर की प्रभा में नव राग घोल आए।

निज सोच शुद्ध हो ले कुछ ज्ञान बुद्ध कर लें।
बाटें क्षमा सहज मन निज क्रोध रुद्ध कर लें।
प्रणयी प्रपन्न श्वासें मझधार में बहें जब।
सित भाव तरण तरिणी किंजल सजें रहें तब।
गठरी विकार की हम कर होम डोल आए।
नव वर्ष आगमन पर नव द्वार खोल आए।

अवसाद में घिरी थी जो बात रात थी तम।
आ अक्ष में तिरी वो लहरें विषाद की नम।
मंजरि सनी पवन लय आरुषि बुहार लाई।
महका निलय निरामय शुभ्राभ धार आई।
हम पोटली खुशी की बिन मोल तोल आए।
नव वर्ष आगमन पर नव द्वार खोल आए।

उन्माद में अकारण लंका स्वयं स्व जारी।
हो सत्य से पराभव हैं दर्प अश्व भारी।
संवाद में अमिय रस पुष्पांजली लड़ी हो।
बेड़ी न पाँव में हों न बंध हथकड़ी हो।
मन मुद फिरे वलय में सुख सार बोल आए।
नव वर्ष आगमन पर नव द्वार खोल आए॥

*** सुधा अहलुवालिया

प्रपन्न-शरणागत / किंजल-किनारा / होम-भस्म / निलय-आकाश / निरामय-निष्कलंक / पराभव-हारा हुआ / वलय-शून्य

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