Sunday, 26 January 2025

सकल सृष्टि - एक गीत

 

हे भुवनेश प्रकृति पति ईश्वर, जग उपवन के माली।
सुन्दर सुरभित उपादान ले, सकल सृष्टि रच डाली।

है अक्षुण्ण जो सृष्टि तुम्हारी, मरुत सदृश हैं गायक।
जहाँ मनुज का हस्तक्षेप न, वही प्रकृति सुखदायक।
रसवंती सरि धवल हिमालय, हवा चले मतवाली।
सुन्दर सुरभित उपादान ले, सकल सृष्टि रच डाली।

अमला धवला और नील सी, नदियों का इठलाना।
लहर-लहर आँचल लहराना, इत-उत आना जाना।
झर-झर झरें दूधिया निर्झर, मनमोहक हरियाली।
सुन्दर सुरभित उपादान ले,सकल सृष्टि रच डाली।

हे मानव उपवन निसर्ग से, अगणित खुशियाँ भरता।
वन्य जीव का यही सुखालय, पंक्षी कलरव करता।
सुनो कर्ण में घोल रही मधु, कोकिल कूक निराली।
सुन्दर सुरभित उपादान ले, सकल सृष्टि रच डाली।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

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