आगत का है स्वागत करना, संस्कृति का आधार लिए।
घटती-बढ़ती नित्य पिपासा,
पथ की बाधा बने नहीं।
अधरों की चाहत रखने में,
हाथ झूठ से सने नहीं।
सत्यमेव जयते हो प्रतिपल, नैतिकता का सार लिए।
आगत का है स्वागत करना, संस्कृति का आधार लिए।
भूले बिसरे गीत सुनाती,
प्यार भरी जग की बातें।
हँसते-रोते हमने खोया,
अनगिन साँसें दिन रातें।
अवशेष सजाना होगा हमको, स्नेह जगत व्यवहार लिए।
आगत का है स्वागत करना, संस्कृति का आधार लिए।
पूरब की लाली से सुंदर,
वर्ष ईसवी सदी गयी।
नूतन अनगढ़ भाव व्यंजना,
सुबह हमारी साँझ नयी।
"लता" पुनः नव पत्र संँवारे, हरित प्रभा शृंगार लिए।
आगत का है स्वागत करना, संस्कृति का आधार लिए।
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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