द्वंद्व नहीं आपस में भाई, अब वैश्विक धर्म निभाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।
देव भूमि के सतत साहसी, है शक्ति आसुरी मँडराती,
धौंस जमाते बारूदी जो, मातृ भूमि की दहले छाती,
असुर,निशाचर दमन हेतु फिर,शक्ति कालिके बन जाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।
गुणगान विश्व करता जिसका, गरिमा जिसकी न्यारी जग में,
है पावन संस्कृति परिपाटी, सरस सुधा भरती रग-रग में,
विद्या विवेक थाती अपनी, निष्ठा प्रतिमान बढ़ाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।
ज्ञान चक्षु को खोलो भाई, भीरु नहीं हम मान हमारा,
लता बढ़े दृढ़ प्रेम कर्म से, शत्रु सीख है नहीं गँवारा,
वक्त आ गया भेद मिटाकर, संस्कृति अपनी अपनाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी ***
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