Sunday 31 January 2021

अनंत पुष्प-वाण में


 
सजी रती अनंग की प्रदीप्त पद्म छावनी।
अनंत पुष्प-वाण में बिंधी प्रणीत पावनी॥
 
कबीर ओढ़ चूनरी वधू बनें रचे-बसे।
रमें अनेक भाव में सुछंद मंजुषा कसे।
हुई निहाल जीवनी भजे प्रभात अर्चना।
न दंभ है न लालसा न मान है न अर्दना।
नवम्‌ नवम्‌ रसामृताम्‌ झरी विनीत सावनी।
अनंत पुष्प-वाण में बिंधी प्रणीत पावनी॥
 
मिलाप प्रेम-कुंज में अलाप कृष्ण साधिका।
रखे कपाट मूँद के निमग्न मंजु राधिका
चली बयार प्रीति की थमी-थमी बही-बही।
निहारिका पुकारती सुलोचना ढही-ढही।
हिरण्य-अक्ष काँपते स्व-गीत मीत लावनी।
अनंत पुष्प-वाण में बिंधी प्रणीत पावनी॥
 
निशांत स्वर्ण बो रहा प्रमृष्ट हो गई धरा।
वसंत राग छा गया मनस्वनी सजी स्वरा।
विहंग कोकिला-कुहू मृदंग भैरवी बजी।
बिछे प्रसून-पाँवड़े निनाद भ्रामरी सजी।
प्रशांत रश्मियां झरीं प्रपन्न ओस स्रावनी।
अनंत पुष्प-वाण में बिंधी प्रणीत पावनी॥
 
 ( प्रमृष्टि - धोया हुआ )
 
*** सुधा अहलूवालिया ***

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