Saturday, 23 January 2021

आरंभ

 



वह बही जा रही थी
यात्रा के अवशेष ढोती
रास्ता अवरुद्ध
पाँव घिसटते हुए
आखिरकार
थककर रुक गई
गंतव्य दूर था
वह सारा बोझ
जो सदियों से
ढोतीं आई है
उसका मार्ग रोके थे
सभी विकल्प समाप्त
पर गति उसका
जीवन था
बहना उसका कर्म
एक नन्ही सी धारा ने
अपना मार्ग खोज लिया
एक नया उद्गम बन
मुक्त हो
बह निकली
अक्सर जो लगता
है अंत
होता है
एक नई राह
नव विकल्प का
शुभ आरंभ..!
 
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*** सरस दरबारी ***

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