Sunday 10 January 2021

आने वाला कल

 


आने वाला कल आएगा जाने वाला पल जाएगा।
समय यही है अपना बन्दे बीज रोप दे फल पाएगा॥
 
नेह सनी आभा छलका दे मन-मंजुल आँगन सरसा दे।
छाँव तले भीगेगी काया करुण जलद बन घन बरसा दे।
सावन की हरियाली निर्मल मानस-दृग शुचिता भर लेंगे।
वासंती पीली सरसों में प्रेम दिवस का मधु परसा दे।
पाप-पुण्य के तृण संचित कर जीव स्वयं कुटिया छाएगा।
समय यही है अपना बन्दे बीज रोप दे फल पाएगा॥
 
समय सदा गतिमान रहा है कहाँ रुका है कहाँ थका है।
श्वास-श्वास पल-पल का डेरा वर्तमान रुक कहाँ सका है।
अभी करेंगे-तभी करेंगे सोच यही दुर्बल जन-मन की।
माटी में जो बोया हमनें ऋतु से पहले कहाँ पका है।
पुष्प खिले सौरभ बिखरे है फल पक जाए तो खाएगा।
समय यही है अपना बन्दे बीज रोप दे फल पाएगा॥
 
रात बहुत काली है माना नई-रश्मि नभ से लानी है।
आँखों से कोई सुन ले तो बिन बोले, बोले बानी है।
संचित कर ले मन-माणिक तू जीवन की सुंदर नौका में।
निर्मल धारा में डुबकी ले, मानस में मंजुल पानी है।
दुख की बूँदें घुल जाएंगी सुख-सागर लहरें लाएगा॥
समय यही है अपना बन्दे बीज रोप दे फल पाएगा॥

*** सुधा अहलूवालिया ***

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