समय भला बुरा सही सधी हुई ही चाल है
नवीनता लिए हुए नया मगर ये साल है
जो दूध का जला हुआ वो छाछ फूँक पी रहा
ये ज़ायका भी वक़्त का जनाब बेमिसाल है
पहन लिये हैं वक़्त ने नये हसीन पैरहन
कि जश्न भी है शोर भी है जोश में उछाल है
रुकी नहीं है ज़िंदगी कहीं किसी दबाव में
जिजीविषा अदम्य ही मनुष्य की मिसाल है
सुखों दुखों के बीच ही रचे बसे हुए हैं हम
दिनों के मध्य रात भी बतौर अंतराल है
वो दौर ही गज़ब रहा कि कशमकश रही हमें
कोई करे हमें अभी उदास क्या मज़ाल है
गले मिलेंगे मौसमों से हम नये मिज़ाज से
नये कथन नये वचन नये सृजन का साल है
*** मदन प्रकाश सिंह ***
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