Sunday, 3 January 2021

जोश में उछाल है

 



समय भला बुरा सही सधी हुई ही चाल है
नवीनता लिए हुए नया मगर ये साल है
 
जो दूध का जला हुआ वो छाछ फूँक पी रहा
ये ज़ायका भी वक़्त का जनाब बेमिसाल है
 
पहन लिये हैं वक़्त ने नये हसीन पैरहन
कि जश्न भी है शोर भी है जोश में उछाल है
 
रुकी नहीं है ज़िंदगी कहीं किसी दबाव में
जिजीविषा अदम्य ही मनुष्य की मिसाल है
 
सुखों दुखों के बीच ही रचे बसे हुए हैं हम
दिनों के मध्य रात भी बतौर अंतराल है
 
वो दौर ही गज़ब रहा कि कशमकश रही हमें
कोई करे हमें अभी उदास क्या मज़ाल है 
 
गले मिलेंगे मौसमों से हम नये मिज़ाज से
नये कथन नये वचन नये सृजन का साल है
 
 *** मदन प्रकाश सिंह ***

No comments:

Post a Comment

मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना - एक गीत

  हो कृपा की वृष्टि जग पर वामना । मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना॥ नाव मेरी प्रभु फँसी मँझधार है, हाथ में टूटी हुई पतवार है, दूर होता ...