Sunday, 2 September 2018

एक गीत - नदियाँ



कल-कल करती नदियाँ गाती, माँ सम लोरी गान।
गरल पान करके भी नदियाँ, करती सुधा प्रदान।।


नदियों से ही नहरें निकलें, जिनसे सिंचित खेत।
ऊपजाऊ मिट्टी भी देखो, नदियों की ही रेत।।
कंकड़-पत्थर सभी यहाँ पर, सरिता के सोपान।
गरल पान करके भी नदियाँ, --------------।।


***********************************


नाले पोखर नहर सभी ही, नदियों की सौगात।
सागर को सरिता का पानी, मिलता है दिन-रात।।
बिन नदियों के नही जीविका, माने सभी किसान।
गरल पान करके भी नदियाँ, --------------------।।


************************************


बिन श्रम के सरिता का पानी, कुदरत की ही भेंट।
नहा नदी में मनुज सदा ही, ले थकान को मेट।।
नदी किनारे शहर बसे है, खिलें जहाँ उद्यान।
गरल पान करके भी नदियाँ, -----------------।।


*************************************

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

No comments:

Post a Comment

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...