Sunday, 29 October 2017

सार छन्द

 
गहन तिमिर हर ओर व्याप्त था, घटा घिरी अनचाही।
आसमान में घोर अँधेरा, भटक गया था राही।।
निबिड़ निशा के अंधकार से, उसका मन घबड़ाया।
तभी चमकते खद्योतों ने, उसको मार्ग दिखाया।।


ऐसा ही मानव जीवन में, नित होता रहता है।
ज्ञान ज्योति अज्ञान तिमिर में, मन उलझा रहता है।।
विषयों में बँध अज्ञानी मन, अंधकार में भटके।
ज्ञान प्रकाशित हो जाये तब, मन उजियारा चमके।।


कुन्तल श्रीवास्तव

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