जब लौटे वनवास से, लखन सहित सियराम।
दीपों से जगमग हुआ, नगर अयोध्या धाम।।1।।
जलते दीपों ने दिया, यह पावन संदेश।
ज्योतिपुञ्ज श्रीराम हैं, रावण तम के वेश।।2।।
देवी कल्याणी रमा, कृपा करें इस बार।
हर घर में हो रौशनी, भरे रहें भंडार।।3।।
जलता दीपक एक ही, तम को देता चीर।
बुझे दीप को जारकर, लिखे नयी तकदीर।।4।।
जले दीप से दीप तब, बदलेगा परिवेश।
ज्ञानदीप से कट सकें, जीवन के सब क्लेश।।5।।
***हरिओम श्रीवास्तव***
ज्योतिपुञ्ज श्रीराम हैं, रावण तम के वेश।।2।।
देवी कल्याणी रमा, कृपा करें इस बार।
हर घर में हो रौशनी, भरे रहें भंडार।।3।।
जलता दीपक एक ही, तम को देता चीर।
बुझे दीप को जारकर, लिखे नयी तकदीर।।4।।
जले दीप से दीप तब, बदलेगा परिवेश।
ज्ञानदीप से कट सकें, जीवन के सब क्लेश।।5।।
***हरिओम श्रीवास्तव***
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