Sunday 1 October 2017

छन्द -- मदिरा सवैया


(1)


मन्द हँसी मुख ऊपर मात सुदर्शन रूप लुभाइ रही।
अंक लिये प्रिय पुत्र गजानन वत्सलता रस-धार बही।
तेज प्रवाहित है मुख मंडल भक्त सभी जयकार कही।
कष्ट हरो तुम आकर मात दुखी सब हैं इस पूर्ण मही।


(2)


हे भवतारिणि विश्व विनोदिनि हास विलासिनि पुण्य प्रदे।
संकटहारिणि अम्बर गामिनि दैत्य विनाशिनि माँ सुख दे।
मोद प्रमोदिनि केसरि वाहिनि कीर्ति प्रसारित भी कर दे।
मंगलकारिणि ज्ञान प्रकाशिनि बुद्धि विवेक शुभा वर दे।
 

भारती जोशी, चमोली, उत्तराखंड।

No comments:

Post a Comment

छंद सार (मुक्तक)

  अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी। राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी। किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा, दर्द ...