सो जाता जब ये जग सारा,
घर, आँगन, पनघट, चौबारा।
सुधियों में स्पंदित पल-पल,
दिल मेरे! तू ही होता है।
खेता है तू सुख की नौका,
दुःख के पर्वत भी ढोता है,
भर जाता आकंठ कभी तो,
कभी बहुत खाली होता है,
भावों का अनुबंध तुझी से,
तू ही पाता और खोता है।
जब होता है संगम तेरा,
कितने मधुर पुष्प खिल जाते,
जीवन पथ के कदम-कदम पर,
मधु, पराग, सौरभ मिल जाते,
पर विछोह का दंश चुभे जब,
चुपके-चुपके तू रोता है।
लघु आकार भले ही तेरा,
किन्तु वृहद आयाम बहुत है,
एक सृष्टि लक्षित है बाहर,
अंदर तेरे एक निहित है,
सारे क्रिया कलापों का ही,
संचालन तुझसे होता है।
***** प्रताप नारायण
दुःख के पर्वत भी ढोता है,
भर जाता आकंठ कभी तो,
कभी बहुत खाली होता है,
भावों का अनुबंध तुझी से,
तू ही पाता और खोता है।
जब होता है संगम तेरा,
कितने मधुर पुष्प खिल जाते,
जीवन पथ के कदम-कदम पर,
मधु, पराग, सौरभ मिल जाते,
पर विछोह का दंश चुभे जब,
चुपके-चुपके तू रोता है।
लघु आकार भले ही तेरा,
किन्तु वृहद आयाम बहुत है,
एक सृष्टि लक्षित है बाहर,
अंदर तेरे एक निहित है,
सारे क्रिया कलापों का ही,
संचालन तुझसे होता है।
***** प्रताप नारायण
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