दश आनन
मार दिया रण में। सब गर्व मिला वसुधा कण में।
छवि
राम बसी सबके उर में। विजयोत्सव दीप जले घर में।।
दस पाप
हरे तन से मन से। सत धर्म जयी बरसा घन से।
वनवास
समापन की घड़ियाँ। जननी बुन हार रही कलियाँ।।
रघुवीर पधार रहे पुर में। जयकार किया सबने सुर में।
नर -
नार मनोरथ पूर रहे। नयनों ठहरा दुख भार बहे।।
गगरी
जल की सिर पे धर के। पथ फूल बिखेर रहीं सर के।
जननी
धरि धीर खड़ी मग में। दुख रोकर आज पड़ा पग में।।
सुख
चौदह वर्ष बिता वन में। घर पाकर फूल रहा मन में।।
जननी
सबका मुख चूम रही। कपि केवट भाग्य न जात कही।।
धर रूप
अनूप खड़े सुर भी। लखि राम रहे गज कुक्कुर भी।
सरयू
हरषी वसुधा सरसी। सुख से भर के अखियाँ बरसी।।
जय राम
रमापति पाप हरो। भव प्रीति भरी मन दूर करो।
शरणागत
के सिर हाथ धरो। मन में प्रभु भक्ति -विराग भरो।।
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डॉ.
मदन मोहन शर्मा
सवाई
माधोपुर, राज.
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