करे आप को तू यहाँ, तू को कर दे आप॥
शानोशौकत ऐश सब, दुःख-व्याधि-संताप।
पैसे से सब-कुछ मिले, पुण्य कमा लो पाप॥
सब-कुछ ही संभव यहाँ, कैसी भी हो माप।
जब इंसाँ का क़द बढ़े, बढ़े ज़मीं की नाप।।
जिसको देखो वह करे, निशि दिन एक विलाप।
ख़ूब मुझे पैसा मिले, समझो भले प्रलाप॥
कलियुग का जप तप यही, पैसों का है जाप।
पैसों से भाई-बहन, पैसों से माँ - बाप॥
*** रमेश उपाध्याय
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