छोड़ कर जाना नहीं प्रिय साथ मेरे वास कर लो।
पूर्ण होती जा रही मन कामना तनु प्यास भर लो।
पूर्ण होती जा रही मन कामना तनु प्यास भर लो।
मैं धरा अंबर तुम्ही हो लाज मेरी ढाँप लेना।
मैं रहूँ सम्पन्न तू नम रैन अरुणिम ताप देना।
प्राण मेरे हैं तुम्हारी चेतना के आवरण में।
मैं सु्वासित पुष्प सी तू भौर मंजरि आभरण में।
चाँदनी मैं तू समुंदर विकल नभ तक लास भर लो।
मैं रहूँ सम्पन्न तू नम रैन अरुणिम ताप देना।
प्राण मेरे हैं तुम्हारी चेतना के आवरण में।
मैं सु्वासित पुष्प सी तू भौर मंजरि आभरण में।
चाँदनी मैं तू समुंदर विकल नभ तक लास भर लो।
तू गया जो प्राण मेरे साथ तेरे हो लिए प्रिय।
आहटों में पत्र सूखे बोलते स्वर खो लिए प्रिय।
हो ठहर तेरी अयन में साँझ का पंथी न बन यों।
आगलित मन भीग ले बस मत विरह रस धार जन यों।
जीवनी के कटु समर में साथ मेरे रास कर लो।
आहटों में पत्र सूखे बोलते स्वर खो लिए प्रिय।
हो ठहर तेरी अयन में साँझ का पंथी न बन यों।
आगलित मन भीग ले बस मत विरह रस धार जन यों।
जीवनी के कटु समर में साथ मेरे रास कर लो।
गूँज प्रेमिल फिर पुकारे है मधुर स्मृति मन गगन में।
हो कहीं बेलक जलद फिर अश्रु बोएंगे लगन में।
गीत बन आरोह औ अवरोह की लहरें डुबातीं।
नेह की मृदु पकड़ में आनंद की ठहरें लुभातीं।
इन्द्रधनु के रंग जीवन में सजें नित न्यास कर लो।
छोड़ कर जाना नहीं प्रिय साथ मेरे वास कर लो॥
हो कहीं बेलक जलद फिर अश्रु बोएंगे लगन में।
गीत बन आरोह औ अवरोह की लहरें डुबातीं।
नेह की मृदु पकड़ में आनंद की ठहरें लुभातीं।
इन्द्रधनु के रंग जीवन में सजें नित न्यास कर लो।
छोड़ कर जाना नहीं प्रिय साथ मेरे वास कर लो॥
*** सुधा अहलुवालिया