Sunday, 29 December 2024

कहर बरसता सर्दी में - गीत

सड़क किनारे ठिठुरे प्राणी, नस-नस में नश्वर चुभता,
हिम-श्रृंगों से मरुथल तक में, कहर बरसता सर्दी में।
 
धूप-छाँव की आँख मिचौनी, कृषक देखते जाड़े में
बर्फ पड़ी उत्तर में इतनी, उतरे कौन अखाड़े में।।
हिमकिरीट से श्वेत हिमालय, ढका बर्फ की चादर से,
चादर ओढ़े सटकर मानव, सोता रहता सर्दी में।।

शीत काँपता जिसके भय से, आतप ठंडा पड़ जाता।
वर्षा पर अभिमान उन्हें है, जाड़े से भी है नाता।।
जाड़े में भी फसल उगाते, आस शरद की मावठ से,
नभ से बस शीतलता बरसे, सूर्य तरसता सर्दी में।।

घना कोहरा ख़ूब सताता, सर्दी जब दस्तक देती।
कड़क धूप से राहत पाते, ओस ताप को हर लेती।।
निकला सूरज हुआ सवेरा, गुनगुन धूप सुहाती है,
बढ़ा प्रदूषण बहुत धुन्ध से, ख़ूब अखरता सर्दी में।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday, 22 December 2024

भेद-भाव पर कुण्डलिया

 

अपनों से ही कर रहा, भेद-भाव बर्ताव।
गढ़े नित्य प्रतिमान नव, बदले रोज़ स्वभाव॥
बदले रोज़ स्वभाव, क्रूरता बढ़ती जाती।
स्नेह प्रेम सौहार्द, भावना घटती जाती॥
मोह-भ्रमित इंसान, बँधा स्वारथ सपनों से।
करे तुच्छ व्यवहार, तभी देखो अपनों से॥1॥

ईश्वर ने तो एक-सा, रचा यहाँ इंसान।
भेद-भाव कर के मनुज, रचता नये विधान॥
रचता नये विधान, बेल विष की ख़ुद बोये।
जाति-पाति में बाँट, स्वयं की निजता खोये॥
भूला मानव-धर्म, मनुज मानवता तज कर।
मानव का यह रूप, चकित हो देखे ईश्वर॥2॥

अपना सबको जानना, सब प्रभु की संतान।
समदर्शी रहना सदा, इसमें ही है मान॥
इसमें ही है मान, इसी में है मर्यादा ।
सब हैं एक समान, न कोई कम है ज्यादा॥
भेद-भाव मत साथ, किसी के भी अब करना।
सदा बढ़ाओ हाथ, निर्बलों के हित अपना॥3॥

कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

Sunday, 15 December 2024

कुंकुम तिलक रवि भाल दे - एक गीत

 

प्राची विहँसती खिल उठी, कुंकुम तिलक रवि भाल दे।
लाली कपोलों से उतारे, कर क्षितिज तक लाल दे।

आहट अरुण की सुन उषा, तब माँग में सिंदूर भर।
चल दी सजन के साथ सज, आलोक दिशि-दिशि पूर कर।
वो हो गया चेतन नजर, जिस ओर भी वह डाल दे।
प्राची विहँसती खिल उठी, कुंकुम तिलक रवि भाल दे।

आश्रम हुए जाग्रत हवन का, धूम्र नभ पर छा गया।
ओंकार ध्वनि की गूँज में फल , मौन योगी पा गया।
आहूत देवों हित बटुक, नैवेद्य से भर थाल दे।
प्राची विहँसती खिल उठी , कुंकुम तिलक रवि भाल दे।

कोकिल मधुर वाणी उचारे, मन्त्र निज रव गान कर।
मधुकर करे गुंजन प्रणव को, मात्र किंचित दान कर।
प्रस्फुटन के हित पंकजों को, नीर निर्मल ताल दे।
प्राची विहँसती खिल उठी , कुंकुम तिलक रवि भाल दे।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday, 8 December 2024

युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक - एक गीत

द्वंद्व नहीं आपस में भाई, अब वैश्विक धर्म निभाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।

देव भूमि के सतत साहसी, है शक्ति आसुरी मँडराती,
धौंस जमाते बारूदी जो, मातृ भूमि की दहले छाती,
असुर,निशाचर दमन हेतु फिर,शक्ति कालिके बन जाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।

गुणगान विश्व करता जिसका, गरिमा जिसकी न्यारी जग में,
है पावन संस्कृति परिपाटी, सरस सुधा भरती रग-रग में,
विद्या विवेक थाती अपनी, निष्ठा प्रतिमान बढ़ाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।

ज्ञान चक्षु को खोलो भाई, भीरु नहीं हम मान हमारा,
लता बढ़े दृढ़ प्रेम कर्म से, शत्रु सीख है नहीं गँवारा,
वक्त आ गया भेद मिटाकर, संस्कृति अपनी अपनाना है,
युद्ध-जंग-संग्राम चतुर्दिक, जीवन को आज बचाना है।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी ***

Sunday, 1 December 2024

मित्र वही कहलाता है - एक गीत

 

चेहरे की बातें छोड़ो दिल पढ़ना जिसको आता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।

छीना–झपटी, आँख–मिचौली, गाली देता जो हक़ से,
कभी हँसाता कभी रुलाता, कभी पकाता बकबक से,
नहीं बुराई सुन सकता जो बेशक सच बोले कोई,
विपदा की बारिश में ख़ुद ही जो छाता बन जाता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।

मात पिता, भाई, बांधव ये रिश्ते कितने ख़ास सभी,
मिले जन्म से हमको सारे चलती मर्जी कहाँ कभी,
क़िस्मत से चुन सकते केवल जग में सच्चा मित्र सुनो,
बेशक अपना साया छोड़े पर जो साथ निभाता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।
हर नाता मतलब का नाता थोड़ा ज़्यादा क्या कहना,
स्वार्थी दुनिया रंग बदलती सब कहते बच के रहना,
मगर भरोसा करने से ही मिल सकता है मित्र हमें,
हाल सुनाने से जिसको ये मन हलका हो जाता है,
लाख टके की बात बताऊँ मित्र वही कहलाता है।

सूरजपाल सिंह....
कुरुक्षेत्र।

कहर बरसता सर्दी में - गीत

सड़क किनारे ठिठुरे प्राणी, नस-नस में नश्वर चुभता, हिम-श्रृंगों से मरुथल तक में, कहर बरसता सर्दी में।   धूप-छाँव की आँख मिचौनी, कृषक देखते जाड़...