Sunday 22 January 2023

नैसर्गिक उपहार - एक गीत

 

प्रेम-भाव का मिला सभी को, नैसर्गिक उपहार।
मधु मोहक पावन मुस्कानें, प्रचुर रहा भंडार।

उत्फुल्लित वन कानन उपवन, बिखरी रहे सुवास।
शिशु शावक उन्मुक्त केलिरत, अधर भरे मृदु हास।
प्रकृति सहज वात्सल्यमयी है, ममता का श्रृंगार।
मधु मोहक पावन मुस्कानें, प्रचुर भरा भण्डार।

सरल हृदय निष्कपट छल रहित, रहते भोले बाल।
जाति-पाँति का भेद न जाने, जाने कुटिल न चाल।
कर-कमलों का हार कंठ में, डाल दिया सुकुमार।
मधु मोहक पावन मुस्कानें, प्रचुर भरा भण्डार।

किंतु मनुज आडंबर धारी, कर निसर्ग से वैर।
भरा स्वार्थ से मान रहा है, यह अपना यह गैर।
लूट खजाना बचपन वाला, खुद पर किया प्रहार।
मधु मोहक पावन मुस्कानें, प्रचुर भरा भण्डार।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

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