Sunday, 27 March 2022

वह हाथ थमा देगा (गीत)

 


जीवन सागर की बूँदों में, यह सृष्टि समा देगा।
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
🌸
करते कर्म जगत में जैसा, हम वैसा फल पाते,
बुरे कर्म का बुरा नतीजा, फिर क्यों अश्रु बहाते,
दुनिया में आये हैं जब हम, कर्म करें कुछ अच्छे...
मिला भाग्य से जब मानव तन, फिर क्यों व्यर्थ गँवाते,
लोभ-मोह वश अज्ञानी ही, अहंकार हैं करते 
 
भावी जो प्रारब्ध हमारा, क्यों दान-क्षमा देगा !
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
🌸
दीन और दुखियों की सेवा, प्रभु की सेवा होती,
दया-धर्म निज हृदय बसा लो, ज्यों सीपी में मोती,
प्यार करे जीवों से जो वो, प्रिय जगती का होता...
स्नेह-भावना जब हिय जागे, कभी न करुणा सोती,
प्रेम और विश्वास जगाते, मानवता की आशा
 
नित ज्ञान-भक्ति के रंगों में, निज हृदय रमा देगा।
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
🌸
सोच-सोच कर हम हारे हैं, क्या गुनाह होता है?
मन में सबके पापों का ये, बीज कौन बोता है?
घृणा, द्वेष जीवों की हिंसा, से अपना क्या नाता...
पाप-पुण्य की भूल-भुलैय्या, में मन क्यों खोता है?
कहीं पाप है पुण्य सरीखा, पुण्य पाप-सा दीखे
 
अब धर्म मनुज की राहों में, क्या पाँव जमा देगा?
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
🌸
कुन्तल श्रीवास्तव
डोंबिवली, महाराष्ट्र।

 

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