हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।
शब्दों के कुछ तीर चुभाते, आदत से नेता लाचार।।
दिखला सकते अगर जगत को, व्योम बाँटकर दिखला दो।
सक्षम हो तो जरा लट्ठ से, नीर बाँटकर दिखला दो।।
टुकड़े टुकड़े किये जगत के, नहीं उन्हें अफसोस ज़रा।
लाशें बिछती सभी जगह पर, कब्रिस्तान बना संसार।
हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।।
भड़काते कुछ वाक युद्ध से, स्वार्थ साधते लोग यहॉं।
फूट-डालते उकसा कर के, बढ़ा भयंकर रोग यहाँ।।
द्रवित किया है मानव मन को, बढ़ते नर-संहारों ने।
भौतिक युग की चकाचौंध में, मन में बढ़ता गया विकार।
हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।।
कलियुग अपने चरम बिंदु पर, हृदय भरा आडम्बर हैं।
घात लगाते बियाबान में, छुपे हज़ारों खंजर हैं।।
युद्धों से इतिहास भरा है, सीख कहाँ लेता मानव।
समझौते पर टिकते रिश्ते, दिल से इस पर करें विचार।
हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।।
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
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