सुपावन पर्व होली का लिए उल्लास आया है।
सुमन से रंग ले मनहर हवाओं ने लगाया है॥
क्षितिज का भाल सिंदूरी किया रवि ने उदय होकर -
जलाकर आरती का दीप , पूजा है दिशाओं ने।
बहारों ने बिखेरे फूल पथ पर प्रीति के गंधिल -
किया मदहोश जग सारा उतर उर में फिजाओं ने।
थिरकतीं शतदलों की पाँखुरी पर ओस की बूँदें -
भ्रमर को रास आई जिन्दगानी , मुस्कुराया है॥
गगन में प्रीति के बादल घिरे कुछ देर हैं बरसे -
नहाई झूमकर धरती सजाकर स्वप्न खुशियों के।
हृदय की कामनाओं ने गढ़े उपमान नव अनुपम -
सहेजे मन रहा अब तक सभी उनवान सुधियों के।
सरस - सम्भाव के पंछी खुले आकाश में उड़कर -
कहें इस जिन्दगी को प्यार से हमने सजाया है॥
दिशाओं ने बनाकर चित्र उसमें रंग खुशियों का -
भरा कुछ इस तरह चहुँओर गूँजी प्रीति - शहनाई।
गले मिल भावनाओं ने दिया संदेश है अनुपम -
समय की नाव ले खुशियाँ नदी-पथ से चली आई।
किनारे गाँव के आकर रुकी उपहार वितरण को -
निकट अपने सभी को प्यार से उसने बुलाया है॥
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ओम नारायण सक्सेना
शाहजहाँपुर [उत्तर प्रदेश]
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