Sunday 20 March 2022

होली गीत

 



सुपावन पर्व होली का लिए उल्लास आया है।
सुमन से रंग ले मनहर हवाओं ने लगाया है॥

क्षितिज का भाल सिंदूरी किया रवि ने उदय होकर -
जलाकर आरती का दीप , पूजा है दिशाओं ने।
बहारों ने बिखेरे फूल पथ पर प्रीति के गंधिल -
किया मदहोश जग सारा उतर उर में फिजाओं ने।

थिरकतीं शतदलों की पाँखुरी पर ओस की बूँदें -
भ्रमर को रास आई जिन्दगानी , मुस्कुराया है॥

गगन में प्रीति के बादल घिरे कुछ देर हैं बरसे -
नहाई झूमकर धरती सजाकर स्वप्न खुशियों के।
हृदय की कामनाओं ने गढ़े उपमान नव अनुपम -
सहेजे मन रहा अब तक सभी उनवान सुधियों के।

सरस - सम्भाव के पंछी खुले आकाश में उड़कर -
कहें इस जिन्दगी को प्यार से हमने सजाया है॥
दिशाओं ने बनाकर चित्र उसमें रंग खुशियों का -
भरा कुछ इस तरह चहुँओर गूँजी प्रीति - शहनाई।
गले मिल भावनाओं ने दिया संदेश है अनुपम -
समय की नाव ले खुशियाँ नदी-पथ से चली आई।

किनारे गाँव के आकर रुकी उपहार वितरण को -
निकट अपने सभी को प्यार से उसने बुलाया है॥

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ओम नारायण सक्सेना
शाहजहाँपुर [उत्तर प्रदेश]

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