Sunday 26 September 2021

आचरण क्यों




वेदनायें जी उठी यह क्रूरता का आचरण क्यों।
दर्प मद में लिप्त मानस स्वार्थ घट का आभरण क्यों।

चीखते से मौन चीवर शुष्क आँखें शून्य ताकें।
दो निवालों के लिए दिन रैन श्रम के बिन्दु टाँकें।
मृत हुई संवेदनायें चेतना का आहरण क्यों।
दर्प मद में लिप्त मानस स्वार्थ घट का आभरण क्यों।

है कहीं ऊँचा शिवाला ढूँढता कोई निवाला।
वणिक पण को हैं छुपाए पत्र पर पसरा दिवाला।
शृंग छल बल का समेटे दीनता का आवरण क्यों।
दर्प मद में लिप्त मानस स्वार्थ घट का आभरण क्यों।

दंभ में आक्षेप करते दूसरों का मान हरते।
हीनता का बीज बो कर जो मनुज निज स्वार्थ भरते।
असत्‌ का भंडार संचित रात दिन का जागरण क्यों।
दर्प मद में लिप्त मानस स्वार्थ घट का आभरण क्यों।

*** सुधा अहलूवालिया ***

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...