Sunday, 19 September 2021

रुखसत कर जाओगे

 



मजबूरी का रोना रोकर, कब तक वक्त बिताओगे।
बेबस कहलाकर दुनिया से, क्या रुखसत कर जाओगे॥

सुरसा- सा मुॅंह खोल समस्या, सांझ सबेरे आती है,
घटते - बढ़ते कद से मानों, जीती शर्त लगाती है,
फिर भी खाना-पीना-सोना, बोलो किसने छोड़ा है,
कितनी बार पेट के खातिर, झुक हाथों को जोड़ा है,

अर्जन - रक्षण की चिंता से, कब ऊपर उठ पाओगे,
मजबूरी का रोना रोकर, कब तक वक्त बिताओगे॥

जो लाचार समझते खुद को, आजादी के दीवाने,
तो दुनिया के सम्मुख कैसे, जाते हम सीना ताने,
उन साधनहीनों का साहस, मन में जोश जगाता है,
खोल परों को नभ को छू लो, यह संदेश सुनाता है,

तुम कब अपनी संतानों को, विदुला गीत सुनाओगे,
मजबूरी का रोना रोकर, कब तक वक्त बिताओगे॥

पाप भार से विवश हुआ नर, छल पाखंड रचाता है,
सच की अन्तर्ज्वाला में जल, अपनी चिता सजाता है,
श्रीफल- चंदन -घृत -कपूर भी, दुर्गन्धित हो जाते हैं,
सभ्य सभा के छिद्रों में घुस, तिरस्कार ही पाते हैं,

तुम्हीं चितेरे अपनी छवि के, कैसा चित्र बनाओगे,
मजबूरी का रोना रोकर, कब तक वक्त बिताओगे॥

डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

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