Sunday 16 May 2021

ख़ुशी



ख़ुशी नहीं आती है घर में, बात आपकी है निर्मूल।
बड़ी ख़ुशी की चाहत में हम, छोटी ख़ुशियाँ जाते भूल।।
**
ख़ुशी झाँकती है जब घर में, बंद अर्गला कर लेते हम।
और उजाले के बदले में, घर में हम भर लेते हैं तम।
ख़ुशी सामने खड़ी हमारे, फिर भी देती नहीं दिखाई,
नदी किनारे बैठे बैठे खोज रहे होते हैं शबनम।
यही वजह है अक्सर चुभते जीवन में दुःखों के शूल।
बड़ी ख़ुशी की चाहत में हम छोटी ख़ुशियाँ जाते भूल।।
**
सोचा है क्या बिटिया अपने जब कंधे पर चढ़ जाती है।
उसकी नन्हीं बाहें अपनी जब गर्दन को सहलाती है।
तुतलाकर कुछ भी कह जाना हमको अक्सर करता है ख़ुश,
और बोलती जब माँ-पापा चारों तरफ ख़ुशी छाती है।
बरसाते जीवन में ख़ुशियाँ घर में अक्सर नन्हे फूल।
बड़ी ख़ुशी की चाहत में हम छोटी ख़ुशियाँ जाते भूल।।
**
दौलत का अम्बार ख़ुशी का लोग समझते होता वाहक।
लेकिन सच में तो धन ज्यादा ख़ुशियों में होता है बाधक।
धन से क्रय होती है चीजें नहीं ख़ुशी के सौदे सम्भव,
बिना ज़रूरत ज्यादा धन के लोग भागते पीछे नाहक।
प्रेम भरे रिश्ते हो जाते धन से ख़ुशियों के प्रतिकूल।
बड़ी ख़ुशी की चाहत में हम छोटी ख़ुशियाँ जाते भूल।।
**
ख़ुशी नहीं आती है घर में बात आपकी है निर्मूल।
बड़ी ख़ुशी की चाहत में हम छोटी ख़ुशियाँ जाते भूल।।
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...