Sunday 6 September 2020

ये फूल

 


इन फूलों को देखकर

अकारण ही मन मुस्काए।

न जाने

किस की याद आये।

तब,यहाँ

गुनगुनाती थी चिड़ियाँ।

तितलियाँ पास आकर पूछती थीं,

क्यों मन ही मन शरमाये।

उलझी-उलझी सी डालियाँ,

मानो गलबहियाँ डाले,

फूलों की ओट में छुप जायें।

हवाओं का रुख भी

अजीब हुआ करता था,

फूलों संग लाड़ करती

शरारती-सी

महक-महक जायें।

खिली-खिली-सी धूप,

बादलों संग करती अठखेलियाँ,

न जाने क्या-क्या कह जाये।

झरते फूलों को

अंजुरि में समेट

मन बहक-बहक जाये।

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*** कविता सूद ***

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