इन फूलों को देखकर
अकारण ही मन मुस्काए।
न जाने
किस की याद आये।
तब,यहाँ
गुनगुनाती थी चिड़ियाँ।
तितलियाँ पास आकर पूछती थीं,
क्यों मन ही मन शरमाये।
उलझी-उलझी सी डालियाँ,
मानो गलबहियाँ डाले,
फूलों की ओट में छुप जायें।
हवाओं का रुख भी
अजीब हुआ करता था,
फूलों संग लाड़ करती
शरारती-सी
महक-महक जायें।
खिली-खिली-सी धूप,
बादलों संग करती अठखेलियाँ,
न जाने क्या-क्या कह जाये।
झरते फूलों को
अंजुरि में समेट
मन बहक-बहक जाये।
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*** कविता सूद ***
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