Sunday, 13 September 2020

निर्धन

 


उन्नत मन-शक्ति
अव्यक्त अभिव्यक्ति
समय क्षुब्ध, व्यथित तन, शांत-मन
प्रतिदिन तिमिरांत रात्रि अवसान गहन।
भानु उदय पर मन चपल
धुम्रांत विव्हल।
अस्त-ध्वस्त-त्रस्त
काल के कपाल पर पस्त।
दैनन्दिनी
मात्र रोटी व श्रम
जीविकोपार्जन का क्रम
आक्रान्त
फिर भी शांत
संसार सागर में
लहरों के हवाले
भाग्य विधाता
अविधाता
आँखें अश्रुपूरित
ह्रदय फिर भी पाषाण सा दृढ़
धैर्य और हिम्मत की प्रतिमूर्ति
करुणा और दया की मूर्ति
अपूर्ण क्षतिपूर्ति।
ग़रीबी
एक अभिशाप
वस्त्र तार-तार
आवास विहीन लाचार।
भूख से पेबस्त
अस्त ध्वस्त त्रस्त।
एक त्रासदी
कर अन्तस दृष्टिपात
कर स्व-लक्ष्य सफल।
जिजीविषा क्षरित पल पल प्रतिपल।
यह दृश्य आम नहीं खास है
भारत में गरीब और देश में विकास है।
 
*** सुरेश चौधरी ***

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