Sunday 20 September 2020

आदमी

 


आदमी से बात करना चाहता है आदमी
साथ में औकात रखना चाहता है आदमी
 
मौज में है मखमली तन ये सभी को है पता
टाट के पैबंद ढकना चाहता है आदमी 
 
गौर करता कौन है जी झौंपड़ी की आग पर
देख अपनी राह बढ़ना चाहता है आदमी
 
मर गया ईमान सबका दौलतों के दौर में
खून पीकर पेट भरना चाहता है आदमी
 
हौंसलों को रोक पाना ना किसी के हाथ में
"हाँकला" से रोज लड़ना चाहता है आदमी
 
*** गोविन्द हाँकला ***


No comments:

Post a Comment

मैं गीत लिखती हूँ धरा के - एक गीत

  हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के। हम सभी को जो दुलारे मुस्करा के।। रुप की रानी चहकती सी लगे जो, रजनीगंधा सी महकती ही रह...