कब तक ये चलेगा ऐ ख़ुदा! दौरे क़यामत
कैसे कोई समझेगा भला तौरे क़यामत
इन्साँ की वहशतों ने ये अंजाम दिया है
बन जाएँ न हम सब कहीं अब कौरे क़यामत
ये संक्रामक रोग न जाने कौन जहाँ से आया है
शायद मनु के दुष्कर्मों ने आदर सहित बुलाया है
अब क्यों हाहाकार मचा है, क्यों है चीख पुकार मची
मानव के आदर्शों को तो हमने ताक बिठाया है
ये करो दुआ के हो फैसला अब जान छोड़ दे ये वबा
ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे ख़ुदा है नसीब में मेरे क्या बदा
मुझे बख़्श दे मेरे पारसा ये मेरी समझ से परे हुआ
मुझे मुआफ़ कर दे मेरे ख़ुदा के ईमान से था मैं गिर गया
महामारी का मौसम है मगर रोना नहीं साथी
रखो बस सावधानी धैर्य तुम खोना नहीं साथी
वही जो सोचता है वो सदा होता चला आया
इस हाहाकार से डर से तो कुछ होना नहीं साथी
*** यशपाल सिंह कपूर, दिल्ली ***
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